उत्तराखंड कुणिंद वंश राजवंश,Uttarakhand Kuninda Dynasty Dynasty,Pariksha Vani book

प्रिय छात्र छात्राओं इस अंक में आप कुणिंद वंश राजवंश के विषय में पढ़ने जा रहे हैं| कुणिंद वंश उत्तराखंड के प्राचीनतम राजवंशों में से एक है | इस राजवंश का राज्य कुणिंद जनपद के नाम से ही जाना जाता था| कुणिंद वंश की सूचना प्राचीन भारतीय ग्रंथों से मिलती है| साथ-साथ विदेशी विवरणों के द्वारा भी सूचनाएं प्राप्त हुई है| आशा है आपको यह पसंद आएगा और आप अपनी परीक्षाओं में शत-प्रतिशत अंक लाने की कोशिश करेंगे लेख़ पूरा पढ़ें| और दोस्तों को भी शेयर करें जिससे उनका भविष्य उज्जवल हो सके|

कुणिंदो का इतिहास जानने के स्रोत साहित्यिक स्रोत

कुणिंदो का इतिहास जानने के स्रोत साहित्यिक स्रोत इतिहास को जानने का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत साहित्यिक रचनाएं मानी जाती हैं| इन रचनाओं के द्वारा कुणिंदो की प्राचीनता का अनुमान शत-प्रतिशत लगा सकते हैं | यद्यपि कुणिंदो का इतिहास के किसी क्रम के संबंध में यह साहित्यिक रचनाएं सदैव मोहन रहे हैं | परंतु इनसे गुणों के राज्य विस्तार प्रशासन समाज आदि के संबंध में पर्याप्त सूचनाएं मिल जाती हैं |

1.महाभारत

कुणिंद कालीन इतिहास के लिए महाभारत सर्वाधिक महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है| महाभारत में अनेक स्थानों पर कुणिंद शब्द का उल्लेख मिलता है| साथ ही साथ उनके राज्य विस्तार के संबंध में भी सूचनाएं मिल जाती हैं| भारत में सामाजिक व्यवस्था का वर्णन किया है|

2.अष्टाध्यायी

इस ग्रंथ की रचना की थी यह रचनाएं चौथी पांचवी सदी ईसा पूर्व मानी जाती है| इस ग्रंथ के द्वारा गुणों की प्राचीनता के साथ उनके राज्य का विस्तार तथा उनकी अर्थव्यवस्था के संबंध में प्रकाश डाला गया है|

3.टाल्मी

इस लेखक ने अपने समकालीन पूर्व राज्य के संबंध में अनेकों सूचनाएं प्रदान की है|

पुरातात्विक स्रोत से कुणिंदो का ज्ञान कैसे होता है

किसी भी काल के इतिहास की जानकारी प्राप्त करने के लिए पुरातात्विक सामग्री का अत्यधिक महत्व होता है| कुणिंद कालीन इतिहास को ज्ञान के लिए पुरातात्विक सामग्री की अल्पता गुणों की तत्कालीन संपूर्ण इतिहास की जानकारी देने में अपर्याप्त है | कुणिंदो के संबंध में जो भी पुरातात्विक सामग्री प्राप्त हुई है| वह परिवर्तित काल के संबंध में है| प्राप्त पुरातात्विक सामग्री को अधोलिखित भागों में विभाजित किया गया है
(क )अभिलेख तथा
(ख़ ) मुद्राएं

(क )अभिलेख

प्रमाणिक सामग्री उपलब्ध कराने में अभिलेखों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है | अब तक उनसे संबंधित पांच अभिलेख प्राप्त हो चुके हैं| जो बरहुत व मथुरा में मिले हैं| बहुत में चार अभिलेख तथा मथुरा में एक अभिलेखों के प्राप्त हुई है इन अभिलेखों से गुणों की राजनीतिक स्थिति का ज्ञान प्राप्त होता है|

(ख़ )मुद्राएं

कुणिंदो के इतिहास को जानने की सबसे महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्रोत द्वारा जारी की गई एवं ताम्र धातु से बनी होती थी उसे राजनीतिक स्थिति पर प्रकाश डाला गया है|

कुणिंद मुद्राएं

कुणिंद मुद्राएं के इतिहास को जानने में महत्वपूर्ण प्रमाणिक साधन है| कुणिंद शासकों ने चांदी एवं ताम्र धातु की मुद्राओं का प्रचलन किया | जिसमें खरोष्ठी तथा ब्राह्मी लिपि में लेख उत्तरण कराएं| कुणिंद मुद्राए वर्तमान कुमाऊं गढ़वाल के अल्मोड़ा, देहरादून आदि स्थलों पर मिल जाते हैं| यदि हम पंजाब की बात करें तो लुधियाना के पास करनाल तथा यूपी में बेहट में मुद्राएं मिल जाती हैं | इस प्रकार यहां तीन प्रकार की मुद्राएं प्राप्त होती है|
१.अमोघभूति प्रकार की मुद्राएं
२ अल्मोड़ा प्रकार की मुद्राएं
३. छतरेस्वेर और प्रकार की मुद्राए


Leave a Reply