Ancient Inhabitants Of Uttarakhand,

प्रिय विद्यार्थियों आपको इस अर्थ में उत्तराखंड के प्राचीन निवासी के संबंध में समस्त महत्वपूर्ण बिंदु से अवगत करा रहे हैं| उत्तराखंड में प्राचीन काल से अनेक जातियां निवास कर रही हैं |
जिनका अस्तित्व आज भी बना हुआ है मुझे आशा है यह अंक आपको अच्छा लगेगा और परीक्षा में शत-प्रतिशत अंक लाने में आपकी सहायता करेगा|
Russia once again successfully test missile. This missile is capable of flying at a speed of 11,265 km/hr.
The world’s biggest discovery took place on this day, on January 7, 1610, Galileo discovered the moon of Jupiter.
प्राचीन निवासी
उत्तराखंड में प्राचीन काल से अनेक जातियां निवास करती आ रही हैं | जिनमें से अनेक जातियों का अस्तित्व अभी भी किसी न किसी रूप में हम देख सकते हैं| इन आदिवासियों का उल्लेख हमें प्राचीन भारतीय साहित्य में से मिल जाता है| वेद, पुराण महाभारत रामायण तथा अन्य अनेक साहित्य ग्रंथों के अतिरिक्त विदेशी यात्रियों तथा लेखकों द्वारा यहां के निवासियों के संबंध में जानकारी मिल जाती है| उत्तराखंड में मानव का निवास कब से था यह अभी भी खोज का विषय बना हुआ है|
परंतु इतना निश्चित है कि संपूर्ण इतिहास भारत का उत्तराखंड में ही बसा हुआ है| इसमें कोई संदेह नहीं कि आर्यों से पराजित हो अनेक सेंधव निवासी सुरक्षा की दृष्टि से उत्तराखंड में आकर बस गए थे| और यहीं के निवासी रह गए थे उत्तराखंड की कुछ प्रमुख जातियों का उल्लेख संचित रुप से हम यहां पर आपके सामने प्रस्तुत कर रहे हैं|
कोल जनजाति
यह जनजाति उत्तराखंड की सबसे पुरानी जनजाति मानी जाती है | इस जनजाति का उद्भव पूरे भारतवर्ष में देखने को मिल जाता है |
उत्तराखंड में अनेक स्थानों पर छोटी नदियों, नालों इत्यादि के नामों पर कोल भाषा काम दाता रामगढ़ आदि का प्रभाव आज भी दिखाई देता है उत्तराखंड में बहने वाली अधिक छोटी नदियां के नाम कोल पर ही आधारित होते हैं | जैसे कालीघाट, कोलाघाट इत्यादि इसी प्रकार कुमाऊनी तथा गढ़वाली बोलियों के कई शब्दों में कोल भाषा के प्रभाव को देखा जा सकता है| उत्तराखंड के विभिन्न स्थलों नदियों नालों भाषा आदि में भी यहां की संस्कृति में खुद के प्रभाव को समाहित कर रखा है|
व्यवसाय
कोलो का प्रमुख व्यवसाय कृषि था| कोल नदियों तथा ढलान में छोटे-छोटे खेत बनाकर कृषि किया करते थे| फल फूल की खेती कर अपना जीवन निर्वाह करते थे इसी के साथ फूलों व अनेक जानवरो को पालतू बनाया था| हाथी घोड़े कुत्ते आदि पशुओं के अतिरिक्त मुर्गियां और मधुमक्खी आदि भी पालते थे| उपरोक्त पशु पक्षी उत्तराखंड के पर्वतीय तराई में आज भी मिल जाते हैं| उनको प्रभावित कोल जाति के लिए पत्थर आदि के उपकरणों का उपयोग करती थी| उन्होंने धनुष बाण आदि का आविष्कार कर लिया था|
सामाजिक तथा धार्मिक विश्वास
उत्तराखंड में कुल जाति के अनेक सामाजिक एवं धार्मिक विश्वास आज भी प्रचलित है| कोल स्वभाव में मस्त मौला हुआ करते थे| नाचना गाना दारू पीना उनके जीवन का महत्वपूर्ण अंग था | उन्हें कुमार कुमारी ग्रह बनाने की प्रथा थी जो उत्तराखंड में प्रचलित है| इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि किरात जाति के आगमन से कोल वर्तमान में प्रदेश की ओर चले गए थे| सिंधु सभ्यता के निवासियों की तरह मरने के बाद शव को खुल्ले में फेंकने की प्रथा पर थी | इसके बाद में मृत की हड्डियों को उसकी जरुरत की वस्तुओ के साथ बंद कर समाधि लगा देते थे| भूत-प्रेतों पर जादू टोना जादू पर विश्वास करते थे| उत्तराखंड में आज प्रथा चल रही है| कोल एक धार्मिक जाती थी अनेक देवी देवताओं की पूजा करते थे ना पूजा देवी देवताओं को प्रसन्न करने के लिए समय-समय पर जागर आयोजन करते थे| तथा पशुओं की बलि देते थे|
किरात जाति
किरात जाति का वर्णन प्राचीन भारतीय साहित्य एवं अभिलेखों तथा विदेशी लेखकों की पुस्तकों में मिलता है| किरात जाति को खीर किन्नर किम पुरुष नामों से संबोधित किया जाता है| स्कंद पुराण के केदारखंड में कि भील पुकारते हैं | किरात भारत के पूर्वी भाग असम भूटान सिक्किम नेपाल होते हुए उत्तराखंड तथा हिमाचल प्रदेश के पर्वतीय स्थलों पर बसे हुए थे केदारखंड बनने से पहले kirat मंडल में आता था|
शारीरिक विशेषताएं
किरात मंगोल जाति से संबंध रखते थे उनकी मूंछ दाढ़ी का अभाव होती थी फर्स्टपोस्ट दिए थे व्यवसाय उनसे प्राप्त से अपना जीवन चलाते थे सामाजिक तथा धार्मिक जीवन
किरात संयुक्त तथा बड़े परिवारों में रहते थे उनमें मामा तथा बुआ के लड़के लड़कियों से विवाह करने की प्रथा थी
खश जनजाति
खश उत्तराखंड की एक महत्वपूर्ण जाती थी| इसके संबंध में जानकारी भारतीय साहित्य ग्रंथों के अतिरिक्त विदेशी लेखकों ने भी दी है| जिसमें अलबरूनी टाळमी प्रमुख स्थान रखते हैं| खश शक्तिशाली जाती थी उसने उत्तराखंड में पूर्व से निवास करती आ रही कि किरात जाति को पराजित कर दिया| और उसे दुर्गम पहाड़ी गुफाओं की ओर खदेड़ दिया था इस जाति के वंशज आज भी उत्तराखंड में निवास करते हैं|
शारीरिक विशेषताएं
आर्यो के समान लंबे कर सीधी तथा लंबी नाक गोरे तथा के रंग प्रचुर दाढ़ी मूछ युक्त होते थे| यहां हष्ट पुष्ट व्यक्ति लड़ाई में महारत हासिल रखते थे | इसी कारण कालांतर में खस जाति व आर्यो में भेद कर पाना टेढ़ी खीर बन गया है |
व्यवसाय
इनका मुख्य व्यवसाय कृषि ,पशुपालन ये जमीदार थे|
निष्कर्ष
तो इस प्रकार से यह जातियां उत्तराखंड में समय-समय पर आपने शासन कर दिया है तथा इनसे ज्यादा ताकत वाली जातियों ने इनका दमन किया और इन्हें उत्तराखंड की और भेजना शुरू कर दिया|