रवींद्र नाथ टैगोर जयंती,Rabindranath Tagore Jayanti

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रविंद्र नाथ टैगोर बहुमुखी प्रतिभा के जीते जाते सबूत थे| इनका जन्म 7 मई अट्ठारह सौ इकसठ को एक बांग्ला परिवार में हुआ था |

रविंद्र नाथ टैगोर के पिता का नाम देवेंद्र नाथ टैगोर था जो देश के एक सम्मानित धार्मिक एवं सामाजिक सेवा भाव वाले व्यक्ति थे| उनकी माता जी का नाम शारदा देवी था |
बचपन से ही टैगोर कुशाग्र बुद्धि संपन्न छात्र रहे विदेशी देसी साहित्य के दर्शन को अपने अंदर समाहित कर लिया और एक महान कवि के रूप में सबके सामने आए रविंद्र नाथ जी की शिक्षा दीक्षा सेंट जेवियर स्कूल से हुई थी|

टैगोर का बचपन से ही कविताएं लिखना और उनको पढ़ना बहुत अच्छा लगता था| उन्होंने वकील बनने की कोशिश में 1878 में इंग्लैंड के प्रसिद्ध स्कूल ब्रिज स्टोन पब्लिक स्कूल में अपना नाम दर्ज करा लिया|
यह एक ऐसी बात थी कि भारतीय व्यक्ति इसका सपना ही देख पाते थे परंतु 1880 में इन्होंने बैरिस्टर की डिग्री लेकर अपने वतन की वापसी की आने के बाद इन्होंने लिखने की शुरुआत की उन्होंने अंग्रेजी संगीत बांग्ला चित्रकला आदि की शिक्षा देने के लिए घर पर ही अलग अध्यापक की नियुक्ति कर ली | अध्यापक शिक्षा प्रदान करते थे| शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने 19 एक में पश्चिम बांग्ला के ग्रामीण क्षेत्र में स्थित शांति निकेतन में एक प्रायोगिक विद्यालय की स्थापना की |

जहां उन्होंने स्वयं अध्यापक का कार्य क्या 1921 में विद्यालय विश्व भारती विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाने लगा रविंद्र नाथ टैगोर की मन और आत्मा से लिखी गई रचनाओं और उनकी प्रसिद्धि के कारण इनका नाम गुरुदेव पड़ गया 1905 में भंग भंग दौरान टैगोर ने विभिन्न आंदोलनों में भाग लिया बंगाल विभाजन से संबंधित एक आंदोलन था |

जो पहली बार लॉर्ड कर्जन द्वारा किया गया था कई स्वतंत्रता सेनानियों में भी टैगोर की भूमिका सक्रिय रही इनकी मृत्यु 7 अगस्त 1941 में हुई|

भारत का राष्ट्रगान जन गण मन रविंद्र नाथ टैगोर द्वारा बांग्ला भाषा में लिखा गया था | जिसे संविधान सभा ने भारत के राष्ट्रगान के रूप में 24 जनवरी 1950 को आहूत कर लिया टैगोर न केवल भारत बल्कि श्रीलंका बांग्लादेश के लिए भी राष्ट्रगान लिखें बांग्लादेश का राष्ट्रगान आमार सोनार बांग्ला है|

रविंद्र टैगोर मानवतावादी विचारक व्यक्ति थे उनके गीत हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत से प्रभावित रहते थे टैगोर के इन्हीं महान कार्यों से इन्हें गुरुदेव की उपाधि प्राप्त हुई प्रसिद्ध पुस्तक गीतांजलि के लिए उन्हें वर्ष 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिया गया टैगोर ने नोबेल पुरस्कार सीधा स्वीकार नहीं किया |

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