भारत में डचों का आगमन तथा उनकी विकास की कहानी

डच भारत में व्यापार सत्ता स्थापित करने आए थे | डच नीदरलैंड के निवासी थे ,जिसको होलेंड भी कहते हैं| विदित है कि 1581 तक नीदरलैंड स्पेन कब्जे में था जिसको 1581 में ही आजाद करा लिया गया था | नीदरलैंड राइन नदी के तट पर स्थित है, राइन नदी जर्मनी की ओर से प्रवाहित होती है| नीदरलैंड की राजधानी एम्सटर्डम थी और नीदरलैंड का एक व्यस्तम बंदरगाह का रोस्टर ड्रम था यहीं से यह व्यापार करते थे|
1581 तक नीदरलैंड के लोग गरीबी की हालत में जी रहे थे उनके पास कोई संसाधन नहीं था गरीबी उनके आगे खड़ी थी | 1582 में उन्होंने स्पेन को पुर्तगाल से व्यापार प्रारंभ करना शुरू कर दिया उनको मालूम था कि हमें स्पेन और पुर्तगाल से लोहा लेना है| जिस कारण उन्होंने उन्हें के माल को बेचकर एक नई सेना का गठन किया| सेना का निर्माण किया जो कि स्पेन और पुर्तगाल को टक्कर दे सकती थी|
वह स्पेन से मसाले घोड़े, वस्त्र, औषधि,बारूद आदि को खरीदते थे| और मुनाफे में बेचते थे जिससे उनकी इकॉनमी मजबूत होती,अंत में वह इतने मजबूत हो गए कि उन्होंने स्पेन जैसे देश को धूल चटाना शुरू कर दिया|
डच कंपनी का गठन
नीदरलैंड की संसद ने भारत इंडोनेशिया से व्यापार करने के लिए एक कंपनी बनाई इसकी स्थापना 1598 में की गई थी| इस समय यह कंपनी 65 लाख गिल्डर में बनाई गई थी| इसका नाम वेरी गंदे OST इंडीज( यूनाइटेड ईस्ट इंडिया कंपनी ऑफ नीदरलैंड) रखा गया था |
इस कंपनी का कार्यकाल 21 वर्ष था | इस कंपनी को यह निर्देश दिया गया था कि यदि आपको इन देशों में सैनिक कार्यवाही करनी पड़े तो आप करें 1594 में डच व्यक्ति करनिलस व्हिटमान (हाउट मैन ) कहते थे | सबसे पहले वह इंडोनेशिया गया तथा वहां पर घुमा और उसने देखा कि पुर्तगाली वहां के मुस्लिम लोगों पर जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करा रहे हैं| यह देश मसालों का देश था उन्नत किस्म के मसाले यहां उठते थे| इसी कारण से इसे मसालों का कुंज जिसको मसालों का द्वीप भी कहते हैं| अब वह इंडोनेशिया से निकला और भारत की ओर चला वह 1995 भारत पहुंचा| यहां पर वह जांच पड़ताल करने के बाद ठीक 1 वर्ष बाद 1996 में अपने देश चला गया |
1602 में कंपनी का निर्माण होने के बाद डच भारत पहुंचे और 1604 में उसने पूर्ण निष्कर्ष निकाल लिया कि यहां पर राज किया जा सकता है| और 1605 में अपनी पहली कोठी मसूलीपट्टनम में बनाएं इसके पीछे नील का व्यापार भी था क्योंकि यहां का नील पूरे विश्व में प्रसिद्ध था|
नोट-1602 में एक और भारत आये और दूसरी और ओर उन्होंने इंडोनेशिया में व्यापार कर रहे पुर्तगालियों से सीधा लोहा लिया| और पुर्तगालियों वाल्टम के युद्ध में हरा दिया| वॉल्टन वही स्थान है जहां पर मलक्का की जल संधि है|
परन्तु मल्लका जल संधि पर अभी अधिकार नहीं कर पाए | मलक्का जलसंधि जकार्ता व इंडोनेशिया को दो भागों में बांटती है|
भारत में मसूलीपट्नम में कोठी के बनाने के साथ दूसरी ओर उन्होंने 1605 में इंडोनेशिया का अम्बायना द्वीप को भी जीता | उसके बाद उनकी जीत का क्रम जारी रहा 1613 में उन्होंने विटेविया द्वीप को जीत लिया | विटेविया द्वीप खंडहर से भरा पड़ा था| फिर उसके बाद 1641 में मल्लका जल संधि पर पूर्ण रूप से अधिकार कर लिया था | अब इनका इंडोनेशिया में एक छत्र राज था|
डचों ने अपने व्यापार को संचालित करने के लिए दो मुख्यालय बनाए थे पहला एमस्टरडम जो नीदरलैंड में था दूसरा विटेविया जो इंडोनेशिया में था | यह खंडहरो पर स्थित था जिसको डचों ने बाद में से सही कर लिया था |
नोट-मलक्का पर 20 जून 1641 में डचों का पूर्ण अधिकार हो गया था अब जकार्ता दीप और इंडोनेशिया दीप दोनों स्थान से व्यापार आसानी से होने लगा |
कुछ महत्वपूर्ण स्थान जहां से डचों ने व्यापार किया था
गुजरात-
गुजरात से यह सूती वस्त्रों का व्यापार करते थे गुजरात में प्रसिद्ध स्थान सूरत में कितना लाभ प्राप्त किया अभी तक कोई भी इतना लाभ प्राप्त नहीं किया था इतिहासकार मानते हैं कि उन्होंने 37 % व्यापार में लाभ कमाया था इसका सीधा संचालन एमस्टरडम से होता था|
कोचीन-
कोचीन पुर्तगालियों का एक महत्वपूर्ण केंद्र था जिसे देशों ने 1663 में जीत लिया था यहां से पुर्तगाली अपने राजसत्ता को देखते थे कोचिंग वह स्थान था जहां पर वहा की जनता की सहायता ये युध जीतता गया था इसका कारण पुर्तगाली यहां पर धर्म परिवर्तन को बहुत आगे ले गए थे|
मसूलिपटनम-
मसूलिपटनम 1605 में डचों ने सर्वप्रथम ही पर कोठी बनाई गई थी इसका कारण यहां पर नील की खेती था| यहां का नील विश्व प्रसिद्ध था जिसका मुनाफा बहुत अधिक था| मसूलीपट्टनम का संचालन नीदरलैंड से होता था |
बंगाल का कासिम बाजार-
कासिम बाजार डचों का एक प्रमुख औद्योगिक केंद्र था यहां पर एक गोल चकरी बनाई गई थी जिसमें 3000 से 5000 लोग काम करते थे| यह बनाया गया वस्त्र चीन तक जाता था| अर्थात चीन के व्यापारी वस्त्र को खरीदने के लिए लालायित थे|
चिनसुरा-
चिनसुरा पर रेशम ,शोरा ,आदि उत्पन्न किया जाता था यह बंगाल के हुगली नदी के किनारे स्थित है| वह स्थान है जहां पर बेदरा का युद्ध हुआ था इस युद्ध को इन चिनसुरा का युद्ध भी कहते हैं |
पटना-
पटना पटसन कारोबार किया जाता था | जिसको यहां पर तैयार न करके अपने देश ले जाकर तैयार किया जाता था| जहां पर पटसन को अधिक महत्व दिया जाता था|
उड़ीसा-
उड़ीसा से कपड़ों का व्यापार होता था उड़ीसा केवल मात्र कपड़ों के लिए रखा गया था |
तमिलनाडु-
तमिलनाडु में 1610 को पुर्तगालियों से जीत लिया गया था| यहां पर कपड़े, बारूद का कारखाना, रेशमी वस्त्र का कारखाना, सिक्कों की टकसाल बनाई गई थी | सर्वप्रथम सिक्कों की टकसाल तमिलनाडु में स्थापित की थी इनका सिक्का पगोड़ा कहते थे | इनका मुख्यालय पुलिकट था जिसको 1690 में बनाया गया था उन्होंने 1695 नाग पट्नम मे मुख्यालय बदल दिया बदल दिया गया था |
1759 में अंग्रेजों और डचो मे एक विध्वंसक कारी युद्ध हुआ जिसको वेदरा का युद्ध या चिनसुरा का युद्ध भी कहते हैं| | इस युद्ध में अंग्रेजो ने डचों पूरी तरह से हरा दिया था| अब अंग्रेजों के पास बहुत सारे रास्ते खुल गए थे इन्होंने डचो के समस्त अधिकारों को अपना लिया| जिसमें इंडोनेशिया के सभी द्वीप को अपने कब्जे में कर लिया| सूरत और भारत में जितने भी कार्य स्थल थे जैसे ,इनके टकसाल, कारखाने सब को अपने हाथों में ले लिया गया था| डचो के पास अब कुछ नहीं बचा जिस कारण से डच होलैंड की ओर प्रस्थान करने लगे | 1822 में सूरत को अंग्रेजों ने वापस करना चाहा परन्तु 2 साल तक डचों ने यहां से व्यापार किया | सन 1824 में डचों ने सूरत को अंग्रेजों को बेचकर होलेंड वापस जाने का फैसला किया |
डचों ने किन वस्तुओं का व्यापार किया-
डच भारत में सोना,चांदी,कांच की वस्तुएं आदि लाते और अफीम, मसाले, कपड़ा, शोरा को ले जाते थे |
डचो की नीति-
डचों ने भारतीयों के साथ उदारता पूर्वक बर्ताव किया उन्होंने किसी भी दंडात्मक कार्यवाही को नहीं लागू किया था ,ना ही वह धर्म परिवर्तित करते थे उन्होंने किसानों को शिल्पकार को अग्रिम धनराशि देने की व्यवस्था कर रखी थी| जिससे उनका शोषण नहीं होता था|
डचो के बिछड़ने का कारण-
पहले डच बहुत ज्यादा मजबूत थे बाद में उनकी शक्ति कमजोर होने लगी अंग्रेजों की नौसेना अधिक शक्तिशाली थी| जो उनका सामना नहीं कर पाई वेदरा के युद्ध में डचों की कमर पूर्ण रूप से टूट गई थी | फिर उसके बाद पेरिस की संधि ने भी कुछ कसर नहीं छोड़ी थी पेरिस की संधि 10 फरवरी 1763 में हुई थी इसके बाद अंग्रेजों को भारत में डचों का सत्ता को उखाड़ फेंकने का मौका मिल गया| डच भारत ही नहीं वरन इंडोनेशिया को भी छोड़ कर अपने देश लौट गए ,
नोट-ये पहली यूरोपियन व्यक्ति थे जो भारत को सर्वप्रथम छोड़ कर चले गए थे|