उत्तराखंड में शिल्पकला के प्रकार

उत्तराखंड राज्य में शिल्पकला (sculptural art ) की एक समृद्ध परंपरा रही है, जो की वर्तमान में हस्तशिल्प उद्योग (Handicraft industry) के रूप में फल- फूल रहा है। शिल्प-कला के प्रमुख भाग निम्नवत हैं :-
उत्तराखंड की शिल्पकला के प्रकार
1.काष्ठ शिल्प-
•समूचा उत्तराखंड लकड़ी की प्रधानता के कारण काष्ठ- शिल्प के लिए प्रसिद्ध है। लकड़ी से पाली, ठेकी, कुमया भदेल, नाली, आदि तैयार की जाती है। राजि जनजाति के लोग इस कार्य में मुख्यतः लगे हुए है।
• रिंगाल पिथौरागढ़ आदि जनपदों का मुख्य हस्तशिल्प उद्योग है। रिंगाल से डालें, कंडी, चटाई, सूप, टोकरी, मोस्टा आदि बनाये जाते है। जिनका उपयोग घरेलू एवं कृषि कार्यों के लिए किया जाता है।
• बांस से सूप, डालें, कंडी, छापरी, टोकरी आदि बनाये जाते है।
• बेत से टोकरियाँ, फर्नीचर आदि बनाये जाते है।
• केले के तने तथा भृंगराज से विभिन्न मूर्तियां बनाई जाती है।
2.रेशा एवं कालीन शिल्प-
•राज्य के अनेक क्षेत्रों में भांग के पौधे से प्राप्त रेशों से कुथले, कम्बल (Blankets), दरी ( Carpet), रस्सियाँ आदि तैयार की जाती है।
•पिथौरागढ़ के धारचूला, मुन्सयारी व चमोली के अनेक क्षेत्रों में कालीन उद्योग काफी प्रसिद्ध है। भेड़ों के ऊन से यहाँ कम्बल, पश्मीना, चुटका, दन, थुलमा और पंखी बनाये जाते है।
3.मृत्तिका शिल्प-
राज्य में मिट्टी से अनेक प्रकार के बर्तन (Pots), दीप (Lamp ), सुराही ( Flask), गमले ( Pot ), चिलम (Pipe), गुल्लक (Piggy Bank), डीकरे (Soil’s Box), आदि बनाये जाते है।
4.धातु शिल्प-
•राज्य में धातु शिल्प कला काफी समृद्ध है। यहाँ सोने ( Gold ), चांदी (Silver ) एवं तांबे (Copper ) से कई तरह के आभूषण (Jewellery) बनाएं जाते है।
•राज्य में टम्टा समुदाय के लोग एलुमिनियम (Aluminium), तांबे (Copper), (Copper), पीतल (Brass) आदि धातुओं से घरेलू एवं पूजागृह के लिए अनेक प्रकार की बर्तन तैयार करते है।
5.चर्म-शिल्प-
स्थानी भाषा में चमड़े का कार्य करने वालों को बाडई या शारकी कहा जाता है। राज्य में मुख्य: लोहाघाट, जोहार घाटी, नाचनी, मिलम आदि स्थानों पर चर्म कार्य होता – है। यहां बैग, पर्स, जूते आदि तैयार किए जाते है।
6.मूर्ति शिल्प-
राज्य में मूर्ति कला (Sculpture) की एक समृद्ध – परंपरा रही है। यहां से प्राप्त प्राचीन मूर्तियों में उतर तथा दक्षिण की कला का अद्भुत समन्वय दिखाई देता है। साथ ही क्षेत्री कला का भी प्रभाव दिखाई देता है। राज्य में अनेकों पाषाण (Stone), धातु (Metal), मृण (Ceramics) और लकड़ी (Wood) की मूर्तियां (Sculptures) उपलब्ध है। इनमें से प्रमुख मूर्तियां निम्नलिखित है:-
•विष्णु की देवलगढ़ की मूर्ति – यह मूर्ति 11वीं शताब्दी के आस-पास की है।
• आदि बद्री की मूर्ति – यह 5 फुट ऊंची प्रतिमा अभंग मुद्रा में स्थापित है। जिसके चार हाथ है। जिनमें पद्म, गदा, चक्र तथा शंख है।
• बामन मूर्ति – विष्णु भगवान के 5वे अवतार, वामन भगवान की प्रतिमा काशीपुर में है।
• शेष-शयन मूर्ति – विष्णु की ऐसी मूर्तियां उत्तराखंड के मंदिरों के प्राचीरों, पट्टीकाओं, छतों तथा द्वारों पर उत्कीर्ण मिलती है। जो मुख्यतः बैजनाथ तथा द्वाराहाट की प्रतिमाओं में मिलते है।
• ब्रह्मा की मूर्तियां – ब्रह्मा देवता की एक मूर्ति द्वाराहाट में रत्नदेव के छोटे मंदिर के द्वार के शीर्ष पटिका पर उत्कीर्ण है। तथा दूसरी मूर्ति बैजनाथ संग्रहालय से प्राप्त हुई है।
•नृत्य मुद्रा में शिव मूर्ति – जागेश्वर की नटराज मंदिर तथा गोपेश्वर मंदिर में नृत्यधारी शिव मूर्तियां है।
• बज्रासन मुद्रा – केदारनाथ मंदिर के द्वार पट्टिका पर शिव की बज्रासन मुद्रा की मूर्ति है।
• बैजनाथ की मूर्ति – यह शिव मूर्ति विर्यसन मुद्रा में है। जिसके चार हाथ है, जो विभिन्न मुद्राओं में दिखाई देते है।
• शिव की संहारक मूर्ति –(लाखामंडल) लाखामंडल में शिव की संहारक के रूप में एक मूर्ति प्राप्त हुई है। जो धनुषाकार मुद्रा में आठ भुजाओं से युक्त है।
•नृत्य करते गणपति – जोशीमठ में गणेश की नृत्य करते हुए एक मूर्ति प्राप्त हुई है। गणेश जी के नृत्य मुद्रा में आठ भुजाये है। यह मूर्ति 11वीं शताब्दी के आस-पास की प्रतीत होती है।
• लाखामंडल की मूर्ति – गणपति की यह मूर्ति विशिष्ट है। गणपति मोर पीठ पर सवार है, तथा साथ में दोनों ओर से दो मोर है। मूर्ति के चार हाथ, छ: सिर है। इस मूर्ति पर दक्षिण का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। इस मूर्ति का समय 12वीं शताब्दी के आस-पास का हो सकता है।
•जागेश्वर की सूर्य मूर्ति – यह 3 फुट ऊंची मूर्ति काले पत्थर से निर्मित है। देवता समभंग मुद्रा में सात घोड़ों से मण्डित रथ पर खड़े है।